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    गूगल और हम

    गूगल और हम
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    एक सोशल नेटवर्किंग साइट
    जिसका नाम है गूगल,
    हैं ज्ञान का खजाना,
    जानकारी की पिटारी,
    उत्तर सही प्रश्नों के उसके पास
    जो जो जिज्ञासा हो हमारी।

    गूगल एक सर्च इंजन,
    जहां हम कुछ भी खोज सकते हैं,
    अपने उत्सुकता को शांत कर सकते हैं,
    गणित, विज्ञान, समाज अध्ययन,
    अंग्रेजी, हिंदी या संस्कृत,
    उर्दू, फारसी, चाइनीस, रसियन,
    किसी भी भाषा में
    किसी भी विषय में
    अपनी जान पिपाशा शांत कर सकते हैं।

    परंतु जिस तरह से काम करने के लिए
    सभी जीव धारी को चाहिए भोजन,
    सभी मशीनों और गाड़ियों को चाहिए 
    पेट्रोल डीजल या कोई अन्य शक्ति के साधन,
    गूगल को भी चाहिए एक शरीर
    मोबाइल कंप्यूटर टेबलेट या अन्य गजट,
    और शक्ति के साधन के रूप में विद्युत।

    जिस तरह से हर चीज की एक सीमा होती है,
    गूगल के कानों की भी है एक सीमा,
    अत्यधिक लोड करने पर 
    बंद कर देता है यह काम करना,
    सा नेटवर्क देने लगता है जवाब,
    धीमी गति से होने लगता है काम,
    या फिर बंद कर देता है यह करना काम।

    गूगल के बिना जिंदगी हो गई है बड़ी मुश्किल,
    सुबह उठते समय गूगल,
    रात को सोते समय गूगल,
    दिन में काम करते समय गूगल,
    यहां तक की खाना खाते समय भी गूगल,
    बंद कर दिया है मनुष्य ने करना दिमाग से काम,
    रह गया है तो सिर्फ गूगल और सिर्फ गूगल।

    -- : रचनाकार : --
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    ( अप्रकाशित, मौलिक और स्वरचित रचना)

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