मेरी कलम से निकल कर लफ्ज़, कागज पर बिखर जाते हैं।
मैंने अपने जज्बात लिखती हूं, आपके दिल में उतर जाते हैं।
ऐ साहिब, जो बोला करो तो थोड़ा तौल तौल कर बोलो
बिना वजन वाले शब्दों से ही तो, रिश्ते सारे बिखर जाते हैं।
शीशे सा दिल रखना यहां, इतना भी आसान नहीं होता
ये दुनिया है साहिब, यहां पत्थर दिल भी बिखर जाते हैं।
यूं तो साथ रहता है हरपल मेरे, उनकी यादों का कारवां
फिर भी शाम के लम्हे अक्सर, तन्हाई में ही गुजर जाते हैं।
मंजिल के रास्ते कितने भी कठिन क्यों न हो, फिर भी
ऐ साहिब, हटा कर राहों से पत्थर लोग चढ़ शिखर जाते हैं।
मयखाने जाकर भी जब दर्द से आराम नहीं मिलता तो
ऐ साहिब, तेरी यादों के पहलू में आकर सिमट जाते हैं।
आज के दिन है बस ये जो जिंदगी है, जी लो जी भर के
मरने के बाद किसे क्या मालूम, हम सब किधर जाते हैं।
सुशी सक्सेना