महादानी ऋषि दधीचि
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परम तपस्वी महर्षि दधीचि,
एक महान शिव भक्त थे।
ज्ञान के भंडार थे वे ऋषि,
कुछ भी करने में समर्थ थे।
तपस्या में रहते थे लीन,
शिव भक्ति में तल्लीन थे।
दानी-महादानी थे वे,
नि:संकोच दान देते थे।
याचक मांगता है क्या,
यह कभी नहीं सोचते थे।
वृत्रासुर के आतंक से त्रस्त,
जब देव-मानव सब थे।
उपाय निवारण का उससे,
दधीचि-अस्थि-शस्त्र थे।
कौन मांगे अस्थि ऋषि से,
सब देवगण चिंतित थे।
ऋषि दधीचि जब सुने यह,
खुशी से दान दिए अस्थि थे।
भूत भविष्य वर्तमान में,
न होगा दधीचि सा दानी।
लोक कल्याण के लिए ,
वे प्राण का दिए दान थे।
-- : रचनाकार : --
मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार