"भूकंप पर कविता"
(धरती और मानवता का सन्देश)
डॉक्टर सलोनी चावला
लोगों ने कहा - अरे भूकंप आया !
मैं बोली - ना, किसी का इशारा आया।
धरती मां ने हमें ज़रा प्यार से हिलाया,
जैसे ज़मीर को सोते हुए से जगाया।
शायद आज धरती माँ का दिल भर आया।
और हम सभी तक यह पैगाम पहुंचाया।
इस पैगाम से हमें यह एहसास दिलाया -
कि "तुमने मुझे आज यह दिन दिखलाया।
युगों से तुम्हें अपनी गोद में बिठाया -
और बदले में है तुमसे मैंने क्या पाया ?
घूम - घूम कर तुम्हें दिन रात का सुख दिलाया,
सूरज के चक्कर काट हर मौसम का रंग दिखाया।
जीवन - जल मैंने तुम्हें भरपूर पिलाया,
और तुमने मेरे जल में रसायन का विष मिलाया !
मैंने अर्बों बच्चों में कभी फ़र्क न जताया,
पर बच्चों को धर्म के पीछे लड़ते ही पाया।
मुझे तो बंटवारे का कभी सपना भी न आया,
और तुमने खुनाखून से बदल दी मेरी काया।
कभी तो बम विस्फोटों से मुझे जलाया,
कभी एक दूसरे के खून से मुझे नहलाया।
हिन्द-पाक ने मेरी गर्दन को अपना-अपना बताया,
कभी सोचा है, मुझे भी कितना रोना है आया ?
मैंने तो सभी प्राणियों को अपने गले लगाया,
फिर क्यों तुमने हमेशा विभाजन का गीत गाया ?
पर कदम तुम्हारा यहीं ही नहीं रुक पाया,
मेरी प्रकृति श्रृंगार से भी खूब खेल रचाया।
जिस पेड़ ने दी अपने दुश्मन को भी छाया,
उसी को काटकर तुमने अपना सपना सजाया।
जिस तरह तुमने मुझ पर है सितम ढाया,
मुझे भी तुम पर कई बार क्रोध है आया।
तरस गई मैं हर पल तुम्हारे प्यार की छाया,
पर मेरी आत्मा का कंपन तुम्हें समझ न आया।
कभी हल्के से, कभी ज़ोर से मेरा दामन कपकपाया,
मगर मेरी रूह का कंपन कभी तुम्हें समझ न आया।"
रचयिता - डॉक्टर सलोनी चावला