मार्ग दर्शक जगत का, मानव सृजन है काम।
गढ़ना मढ़ना रंग भर के , भूल जाना शान।।
है नहीं जाता कहीं ,बस लगा देता पार।
ज़िंदगी के जुड़े होते हैं , उसी से तार।। १।।
अक्स उसका ही दरसता , है यूवा मन में।
गुर सिखाता जिंदगी के , मानवीय तन में ।।
रुप है परमात्मा का , यह कहा जाता।
ढूंढिए विद्यालयों में , है नज़र आता।।२।।
याद आता है हमें , विद्यार्थी जीवन।
दण्ड के संग प्यार भी , करते थे सब गुरुजन।।
शिक्षकों के मान में , झुकता है तन ओ मन।
आज शिक्षक दिवस पर , हैं पंक्तियां अर्पण।।
-Dr. Akhand prakash