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    शिक्षक के साथ मेरी यादें

    शिक्षक के साथ मेरी यादें
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    मेरे गुरुदेव मेरे भगवन
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    मेरे गुरुवर, मेरे भगवन, मेरे तुम भाग्यविधाता हो।
    पथप्रदर्शक, मार्गनिर्देशक, जीवन के निर्माता हो।।
    मैं एक अधुरा बालक था
    तुमने ज्ञानपथ दिखलाया।
    अक्षर-अक्षर सिखाया मुझे
    सफल नागरिक भी बनाया।
    जीवन में कुछ बन पाया इसके कारण भी तुम ही हो।
    मेरे गुरुदेव मेरे भगवन मेरे तुम भाग्य विधाता हो।
    मेरे अंतरात्मा में ज्ञान दीपक
    तुम ने ही तो जलाया था।
    आत्मज्ञान का दिव्य प्रकाश
    मैं तेरी दया से ही पाया था।
    ईश्वर को कुछ समझ पाया इसके श्रेयांक भी तुम ही हो।
    मेरे गुरुदेव मेरे भगवन मेरे तुम भाग्य विधाता हो।
    मेरे गुरुदेव, तुम न होते
    न जाने कहां भटकता फिरता।
    जग की अंधेरी कोठरी में
    दुबका- दुबका रोता रहता।
    जो पद, मान, सम्मान, पाया, तुम ही इसके तो दाता हो।
    मेरे गुरुदेव मेरे भगवन मेरे तुम भाग्य विधाता हो।

    रचनाकार :-
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार
    ( अप्रकाशित, मौलिक और स्वरचित रचना)

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