*हृदय के स्पंद हो तुम।*
*ऊर्जस्वित प्राण करते*
*आदि कवि के छंद हो तुम।*
*हृदय के स्पंद हो तुम।*
*जन्म जन्मान्तर से परिचित,*
*किन्तु नयनों ने न देखा।*
*अन्तर्गुहा के घन तिमिर में,*
*प्रज्वलित बन रश्मि रेखा।*
*तुम मेरी आराधना के,*
*साधना के देवता हो,*
*आदि सीमाहीन, फिर भी*
*पुतलियों में बन्द हो तुम।*
*हृदय के स्पंद हो तुम।*
*एक ही आधार हो तुम,*
*इस विश्व पारावार में।*
*यदि नहीं तुम हुये अपने,*
*फिर शेष क्या संसार में।*
*सघन स्वप्निल शून्यता में,*
*सत्य शिव सुन्दर तुम्हीं हो,*
*शान्ति सुख की सर्जना में,*
*सहज परमानन्द हो तुम।*
*हृदय के स्पंद हो तुम।*
*© सुशील चन्द्र बाजपेयी*