हिंदी दिवस रचित कविता
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आओ हिन्दी दिवस मनाएं
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आओ हिन्दी दिवस मनाएं, हां हिंदी दिवस मनाएं।
न करें कोई खानापूर्ति,न हो सिर्फ रश्म अदायगी।
न हो सिर्फ सभा-सम्मेलन, न दिखाएं दो दिन की दीवानगी।।
जन-जन तक हिंदी के प्रयोग का संदेश पहुंचाएं।
आओ हिंदी दिवस मनाएं, हां हिंदी दिवस मनाएं।।
आ,आ,इ, से करें शुरुआत,क,ख,ग, की हो बात।
सबमें हिंदी में साक्षरता की हो जज़्बात।।
सब मिलकर प्रयोजन मूलक हिंदी को अपनाएं।
आओ हिंदी दिवस मनाएं, हां हिंदी दिवस मनाएं।।
रहन-सहन और बोलचाल में हिंदी को दें भाव।
पठन-पाठन में,शिक्षण में हिंदी को अपनाने की हो चाव।।
हिंदी भाषा के प्रति सभी लोगों में समझ बनाएं।
आओ हिंदी दिवस मनाए, हां हिंदी दिवस मनाएं।।
जन गण मन के हर जन की बने भाषा हिंदी।
जैसे चमचम चमकता सबके माथे की हो बिंदी।।
राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति सबको जागरूक बनाएं।
आओ हिंदी दिवस मनाएं, हां हिंदी दिवस मनाएं।।
देश की आजादी के देखो बीत गए कितने साल।
कुछ तो बताओ अब तक क्यों है हिंदी बदहाल।।
राष्ट्रभाषा हिंदी को समुचित गौरव दिलाएं।
आओ हिंदी दिवस मनाएं, हां हिंदी दिवस मनाएं।।
--: रचनाकार :--
मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार
( अप्रकाशित, मौलिक और स्वरचित रचना)