मेरा परिवार मेरी ताकत*
समय जब अपना ना हो तो अपने भी साथ छोड़ देते है। और जब अपने और अपना परिवार साथ हो तो एक हिम्मत और ताकत बन जाती है। एक समय ऐसा आया जब मुझे मेरे परिवार की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। और उस समय मुझे मेरे परिवार ने बहुत संभाला है।
समय ही ऐसा था जब मैं सबसे ज्यादा अकेला हो गया था, मेरी पहली पत्नी जो की उस समय एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी। और अचानक उसने मुझे तलाक का नोटिस भेज दिया। जब मैंने नोटिस पड़ा तो दंग रह गया की यह क्या हो गया है। जबकि मेरी एक आठ वर्ष की पुत्री भी है। आंखो के सामने अंधेरा सा छाने लगा मैं पागल सा होने लगा था। क्योंकि मैं और मेरी पत्नी दोनो सुखमय जीवन यापन कर रहे थे कभी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं हुआ। सिर्फ मेरे द्वारा उसे डॉक्टर बनाने का एक लक्ष्य भर था। उसका यह कारण था कि वह पहले से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थी।
मुझे मेरे परिवार में माता पिता, भाई बहन एवं पुत्री तथा सभी रिश्तेदारों का सहयोग मिला। इसलिए मुझमें ताकत रही और मैने इस मुसीबत का सामना करके मेरी पत्नी को समझने एवं उसे समझाने का पूरा प्रयास किया।
यहां तक कि मेरे द्वारा पूरे परिवार रिश्तेदारो को लेकर मेरे ससुराल में मनाने के लिए गया। सभी परिवार और रिश्तेदारों के सदस्यों ने मिलकर समझाने का पूरा प्रयास किया। क्योंकि वह हमारे परिवार की बहु नही बल्कि एक बेटी की तरह रहती थी। सभी परिवार एवं रिश्तेदारों में उसकी एक अच्छी बहू के रूप में पहचान थी।
इतना अच्छा सब होने के बाद यदि बेटा बहु के बीच तलाक हो जाए तो सोचो उस परिवार के माता पिता के क्या हाल होंगे। वह देवर जो अपनी बड़ी भाभी के चरण छूता था। एक लक्ष्मण की तरह रहता था मेरी दोनो बहने भी बहुत मान सम्मान से भाभी का ध्यान रखती थी। और वह भी जब घर आती थी तो सबको बहुत चाहती थी। कारण यह कि शादी के समय मेरी पत्नी ने केवल बारहवी के पेपर दिए थे। और शादी होने के बाद बीएससी एवं और भी कोर्स करने के बाद पीएमटी एवं नीट की तैयारी हेतु इंदौर को भेजना तथा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में रहकर एमबीबीएस कराने के लिए पूरा परिवार का एक मत रहा। इतना होने के बाद यदि बेटा बहु, भाई भाभी दोनो के बीच तलाक हो जाए तो क्या परिवार खुश रह सकता है नही कभी नही।
एक दिन जब पूरा परिवार मेरे ससुराल मनाने के लिए गए तो मेरी पत्नी, सास ससुर आदि कोई भी नही माने क्योंकि उस बीच केवल मैं एक सरकारी शिक्षक था।
अंततः प्रयास विफल रहा और हम दोनो के मध्य आपसी सहमति बनी और कोर्ट के द्वारा तलाक़ हो ही गया। तलाक तो मैंने मजबूर होकर दे दिया लेकिन मेरी बेटी को मैने कोर्ट से ले लिया। मेरे साथ हर पल हर समय मेरा परिवार साथ खड़ा रहा। मैने अपने आप को बेटी के लिए जीना है सोच कर संभाला। इस तरह मेरी बेटी के साथ साथ पूरा परिवार मेरी ताकत बना। इस तरह "मेरा परिवार मेरी ताकत" है।
मेरी आप बीती एवं रहस्यमयी सत्य घटना पर आधारित लघुकथा का एक संछिप्त अंश सादर प्रस्तुत...।
*स्वरचित एवं मौलिक लेख*
हरिदास बड़ोदे 'हरिप्रेम'
शिक्षक/कवि/लेखक/गायक/समाजसेवक
बैतूल (मध्यप्रदेश)