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    क्या यही है नारी जीवन?

    क्या यही है नारी जीवन? 
    इतिहास के पन्नों को पलटकर, उस युग में मैंने झांका,, 
    नारी के मानसम्मान का,बजता था ढोलबाजा।। 

    कितनी उपाधियों से सजाया उसे, 
    गृहलक्ष्मी, अन्नपूर्णा, माँदुर्गा का अवतार! 
    वाह!ऐसा था नारी जीवन उसपार।। 

    बचपना की सीढियों से उतरकर, जवानी के दौर से गुजरकर, बाबा की
    निगरानी से निकालकर, ससुराल की
    दहलीज लांघती, 
    पति की निगरानी में पहुँची।। 

    गृहलक्ष्मी..... धन जो ले आयी। 
    अन्नपूर्णा...... सबको खिलाकर, 
     बचा, तो खुद खायी। 
    माँदूर्गा.... । दस हाथों की ताकत, दो हाथों में ले आयी। 
    ऐसा है नारी जीवन!! 

    मन में एक विद्रोह उठा! कया न होगा कोई परिवर्तन? 
    समय ने जोर से चुटकी ली.. .. 
    "आज की नारी पढलिखकर आयी, साथ गुणों का भंडार ले आयी, पर अपने को सबमें बांटकर, अब बेटे की निगरानी में आयी।। 
    यही है नारी जीवन!! 

    एकदिन दर्पण ने दी पुकार, तनिक मुझमें भी झांक, 
    सफेद बालों को सहलाकर, तनिक झुर्रियों में ताक। 
    सिहरन उठी बेजान शरीर में, धुंधली आंखों ने सांस लिया‌‌, कमज़ोर पग बढने लगे, पुरानी दिवारों ने साथ दिया।। 

    सुबक सुबक कर, सिसक सिसक कर, घर आंगन वह लांघ चली, 
    इस लोक की डोर काटकर, उसलोक
    में उड़ चली.. ....।। 

    ऐसा है नारी जीवन!!! 

                             -मीता मजूमदार।

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