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    कान्हा तेरी मुरली ने

    कान्हा तेरी मुरली ने
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    कान्हा तेरी मुरली ने गीत सुनाए
    हम दौड़े चले आए, 
    दौड़े चले आए जी हम दौड़े चले आए।
    कान्हा तेरी मुरली ने गीत सुनाए हम दौड़े चले आए।

    जमुना तट पर जब गोपिया सब पानी भरने जाए,
    मुरली की मधुर धुन जब कानों में पड़ जाए,
    छोड़-छाड़ कर पानी के मटके सब दौड़ी चली आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने चैन चुराए हम दौड़े चले आए।
    दौड़े चले आए जी हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने चैन चुराए हम दौड़े चले आए।

    जब हम दूध बिलोने बैठे मुरली तुमने बजाए,
    मुरली की धुन कानों में पड़ी दूध बिलोना भूल जाएं,
    छोड़-छाड़ कर दूध बिलोना हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने जी है चुराए हम दौड़े चले आए।
    दौड़े चले आए जी हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने जी जो चुराए हम दौड़े चले आए।

    जब जाएं हम सेज पर सोने मुरली तुमने बजाए,
    कानों में पड़ी मुरली की धुन सेज पर सो नहीं पाए,
    छोड़-छाड़ कर सेज पर सोना हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने नींद चुराए हम दौड़े चले आए,
    दौड़े चले आए जी हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली ने नींद चुराए हम दौड़े चले आए।

    जब जाएं सखिया संग खेलने मुरली तुमने बजाए,
    कानों में पड़े मुरली की धुन खेल भी खेल नहीं पाएं,
    छोड़-छाड़ के सखियों संग खेलना रास रचाने आए,
    कान्हा तेरी मुरली हमें बुलाए हम दौड़े चले आए,
    दौड़े चले आए जी हम तोड़ चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली हमें बुलाए हम दौड़े चले आए।
    कान्हा तेरी मुरली ने गीत सुनाए हम दौड़े चले आए,
    दौड़े चले आए जी हम दौड़े चले आए,
    कान्हा तेरी मुरली हमें बुलाए हम दौड़े चले आए।
    ( स्वरचित और मौलिक रचना)
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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