हवा का झोंका
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एक हवा का शीतल झोंका
कर गया मन को हर्षित
सरस सुहावन अति मनभावन
तन मन हुआ है पुलकित।
सावन में उठी ये रसभरी हवाएं
तन मन में आग लगाए
दूर बसे प्रीतम की यादें
सजनी को तड़पाए।
मन में उठती टीस कसक एक
देखे जब झुला झुलती बालाएं
पिया संग जब सखियां सहेलियां
सावन का लुत्फ उठाए।
रोई-रोई विरही पुछे मस्त हवाओं से
किस देश के तुम हो आए
प्रीतम बसे मेरे दूर विदेश में
तुम्ही क्यों न बुलाए।
जो लाओगे मेरे पिय के आने का संदेश
तन मन मेरा हुलसाए
तुम बन जाओगे मेरे "दुर्लभ" पवनदूत
अखियां मेरे मिलन गीत गाए।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार