कोई परिणाम नहीं मिला

    दिख जाते हैं अक्सर,

    दिख जाते हैं अक्सर, 
    स्कूल के बच्चे 
    चिलचिलाती धूप में, 
    खिलखिलाते, 
    बिना कपड़ों के 
    सिर पर भूसे का गट्ठर 
    या फिर हरा चारा लिए
    मै देखता हूँ बेबसी से 
    वो भी देखते हैं, 
    कुछ ठिठक कर
    कुछ सहमकर 
    स्कूल क्यों नहीं आए ? 
    यह पूछने की हिम्मत नहीं होती
    जवाब मुझे मालूम है 
    गेहूँ की बिखरी बालियाँ 
    उठाने जाते हैं 
    बच्चे स्कूल नहीं आते हैं
    क्योंकि 
    कुछ रोज़ बाद खो जाएँगी बालियाँ 
    स्कूल तो हमेशा खुलेंगे 
    कैसे कहें उनसे 
    कि 
    शिक्षा अधिक जरूरी है 
    इसमें भी मीठे सपने हैं 
    पर शायद 
    उन्हें
    अपने पैसे से खरीदी गई जलेबी 
    टाफी गोली कंपट
    अधिक मीठी लगती है 
    अक्सर ऐसा ही होता है 
    गेहूँ की कटाई, 
    गन्ने की पेराई 
    या फिर 
    धान की रोपाई 
    उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है 
    पर शिक्षा भी जरूरी है 
    इतना ही एहसास 
    नहीं हो पाया 
    उनके माता - पिता को 
    और 
    हमारे कुछ शिक्षकों को भी
    नीयत है कि नियति 
    समझना मुश्किल है...

    *राजू पाण्डेय बहेलियापुर*

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म