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    नारी को आशा नेह की तुम्हे सौपती देह

    नारी को आशा नेह की तुम्हे सौपती देह
    तृष्णा तो बस देह की तुम्हे कहां स्नेह

    कटु सत्य है मंजूर किसे चुभे शूल की भांति 
    स्त्रीगमन भी कर लेते हो नही देखते जाति

    पल भर नारी बन सोचो नारी दुःख अनेक
    ज्ञान चक्षु खुल जायेंगे मिटे भरम अविवेक 

    ये भोग विलास की वस्तु नहीं ये देती तुम्हे भी जन्म
    स्त्री जो कर डालती नही होय आजन्म

    प्रेमावश में उसने जब बात तुम्हारी मान ली
    आबरू से खेल लिया फिर भी उसकी जान ली

    बातों का जाल बुन लेते हैं वो इसमें फसती रहती है
    फिर कुछ समय बाद कत्ल की खबरें आती रहती हैं 

    वरुण की कलम से ✍️✍️✍️

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