बचपन का नाम सुनकर मन मे एक सिहरन सी दौड जाती है।हमारे जीवन का सबसे सुखद पल जो भुलाए नही भुलाया जा सकता है। बड़ा ही प्यारा होता है बचपन साथ ही मासूम भी , न कल की कोई चिंता होती है,न भूतकाल का पछ्तावा,जो कुछ मस्ती होती है आज मे होती है। धर्म,जाति,वर्ग,भेद से परे होता है, न कोई छोटा होता है न कोई बड़ा होता है। बचपन तो सिर्फ प्रेम,स्नेह,अपनेपन को आंकता है। बचपन की मां की सुनाई लोरी,बुआ,अम्मा की दूध, बतासे की लोरी भुलाए नही भुलाई जा सकती है। वो खेलते-खेलते रात हो जाना डरकर चप्पल हाथ मे लेकर घर मे घुसना,चन्दा को मामा कहना व चाँद के अंदर बुढिया का सूत कातने पर विश्वास करना,ये सभी बातों को सोचकर मन ही मन हँसी आती है कि हम भी क्या-क्या करते थे। तरह-तरह के खेल खेलना छुपा-छुपी,चोर सिपाही,हरा समंदर,नीली-पीली साड़ी कितने ऐसे खेल थे जिन्हे हम बेफिक्री से खेलते थे।किसी बात की कोई चिंता नही थी। जीवन की हर कठिनाई बचपन मे आसान थी।
पर जब हम बड़े हुए गहरे अवसाद मे खो गए,ईर्ष्या,नफरत,झगडे-झंझटों मे पड़ गए,अपना-पराया,मेरा-तेरा,धर्म जाति,वर्ग-भेद मे फँस कर रह गए। बचपन मे चाहे जिसके यहाँ खाना खा लेते थे,पानी पी लेते थे,पर अब हम हर किसी के यहाँ खाने या पीने के लिए सोचते हैं।
अब हमारे अंदर अहम समाया है। बड़े होने पर हम अपनी कमियो को छिपाते है,और अच्छाइयों का बखान करते नही थकते है, आज के तकनीकी युग ने तो बच्चों का बचपन छीन लिया है। बच्चों का बचपन मोबाइल,वीडियो गेम मे सिमटकर रह गया है। मोबाइल बच्चों के बचपन से खिलवाड़ कर रहा है। वह उन्हें बचपन मे ही बड़ा बना रहा है। उनकी मासूमियत व भोलापन तो जैसे कही गुम हो गई है।जिस कारण से बच्चे अपने पथ से विमुख हो रहे हैं। आज के समय की यह ज्वलंत समस्या है। हमे हर सम्भव ये प्रयास करना चाहिये कि उन्हे समय-समय मार्ग दर्शन करते रहे। ताकि वो अपने बचपन को पूर्ण स्वतंत्रता व आनन्द के साथ बिताएं।
वास्तव मे बचपन को कभी नही भुलाया जा सकता है। ये हमारे साथ स्वर्णिम यादों के रूप मे आजीवन रहता है। यदि कभी मुझसे कुछ मांगने को कहे मै तो सिर्फ अपने बचपन के सुंदर बिताये क्षणों को मांगना चाहूंगी।
- *चारु मित्रा*