जिंदगी एक सुहाना सफर
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ये जिंदगी है एक सुहाना सफर,
इसमें खुशियां भी है और हैं थोड़े गम,
इससे हार के तुम कभी तुम न छोड़ना डगर।
मजा क्या उस फूल का जिसमें कांटे न हो,
मोल क्या उस खुशी का जिसके साथ गम न हो।
सुख-दुख तो दोनों साथी हैं,
संग-संग रहते हैं दोनों जिंदगी में,
एक के बिना दूसरा लगता है ऐसे,
जैसे रात के बिना हुआ दिन हो।
रात न हो तो दिन भी न निकले,
दिन न हो तो सूरज भी न निकले,
कड़वे सच है फूल और कांटे जिंदगी के सफर के।
मंजिल पाता है वही जिंदगी के सफर में,
खो जाता है जो खुशी में और गम में,
न खुशी उसे हसाए और न गम उसे रुलाए,
जीत पाता है वही जो सुख-दुख में अविचल हो।
मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार