गज़ल
*****
वो अदा वो साफगोई और वो लहजा नहीं
बात सच्ची कहनी हो तो कोई भी कहता नहीं।
बेअदब सब हो गए अब आदमीयत खो गई
दर्द अपनों के लिए अब कोई भी सहता नहीं।
तू मैं, मैं तू ना रहे अब तो तू तू, मैं मैं हो रही
रोज मिलते हैं मगर ये दिल कभी खिलता नहीं।
अब लियाकत और शराफत फैशनेबिल हो गई
सब झुकाना चाहते हैं कोई भी झुकता नहीं।,,,, गोपी साजन