ग़ज़ल
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आज अपने आप से ही डर रहा है आदमी
जीते जी मरने से पहले मर रहा है आदमी।
हादसे होना न होना ये अलग ही बात है
हादसे खुद आप पैदा कर रहा है आदमी।
चाहता है हर जगह तारीफ हो उसकी
अपनी गाथा आप गाता फिर रहा है आदमी।
है तमन्ना हर कोई उससे वफा करे
खुद बेवफाई आप से ही कर रहा है आदमी।
सच को कहने से क्यूं इतना डर रहा है आदमी
अपने आदर्शों को खुद ही चर रहा है आदमी।,,,,,, गोपी साजन