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    दिल में जगह नहीं है*

    * दिल में जगह नहीं है*
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    दिल में जगह नहीं किसी के फिर घर में हो कैसे
    मिलते,जुलते नहीं किसी से फिर दिल खुश हो कैसे।

    इच्छाएं बढ़ गई सभी की कैसे ज़रूरत पूरी हो
    सुख मैं भी दुख पाते हैं अब कैसे दिल ये नूरी हो।

    पहले कमरा एक था उसमें सभी समा जाते थे
    रिश्ते नातेदार यार सब मिलके हंसते गाते थे।

    अलग,अलग कमरे हैं फिर भी जगह नहीं बच पाती
    जगह बहुत है घर में या रब फिर भी कम पड़ जाती।

    आजाता मेहमान कोई तो पूछते हैं कब जाओगे
    भूख लगी हो तो बनबाऊं क्या खाना तुम खाओगे।

    सबके लिए पहले जीते थे अब खुद के लिए जीते हैं
    सामने सागर अपने फिर भी हम रीते के रीते है।,,,, गोपी साजन"अनपढ़"

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