*मन बंजारा लगता है।*
प्रिय तुम बिन भी क्या जीवन, सच में खारा लगता है।
तन्हां साजन सपन संजोए, मन बंजारा लगता हैं ।।
यौवन की पूरणमासी में, उद्गारों की खिली चंद्रिका।
अनुरंजित अनुरक्त पिपासित, चाह चंचला सखी हंसिका।।
गिरिनद सी इठलाऊँ रोहित, आस किनारा लगता है ।
तन्हां साजन सपन संजोए, मन बंजारा लगता........
कजरारे घन दामिनि दमके, सखि सावन सरबोर करे ।
जिया जलाए पवन पूरबा , हा!सरस छंद रव रोर करे।।
गाऊँगी कब मृदुल मल्हारें , वक्त छलावा लगता है।।
तन्हां साजन सपन संजोए, मन बंजारा लगता........
परदेशी से प्रीति मधुरतम, प्यारे हद से आ भी जाओ।
श्वांस तुम्हीं विश्वास प्रणय का, पुनि पहले सा षटरस पाओ।।
प्रखर प्राण प्रण पिय पर वारूँ , ये जीवन प्यारा लगता है ।
तन्हां साजन सपन संजोए, मन बंजारा लगता........
-प्रखर
फर्रुखाबाद