समय की गति
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समय की गति बड़ी विचित्र।
कोई नहीं रोक पाया इसको
चाहे कितना बड़ा हो वह बलवान
कोई नहीं पकड़ पाया इसको
चाहे कितना बड़ा हो वह धावक
पल में प्रलय ला देता है
पल में थमा देता तुफान
पल में चहल - पहल और रौनक
पल में सब सुनसान विरान।
सहस्रों काल के गाल में क्षण में समाते
सहस्रों रचें - बसें कहीं भी ठिकाना न पाते
दिवस,मास, वर्ष सहस्रबीतते नहीं लगती देर
ऋतु, मौसम,दिवस, रात्रि,घुर्णन, परिक्रमण,
समय की ही है करामात सब
ब्रह्माण्ड का कण - कण भी
है चलायमान समय की गति से।
नहीं है अछुता सृष्टि का कोई भी कोना
लक्ष चौरासी योनियों में भ्रमण
ग्रह, नक्षत्र, तारें असंख्य,
उल्कापिंड, धुमकेतु, पुच्छल तारा,
सभी आकार पाते हैं समय की गति से।
जीवन - मरण,या आत्मा का चीर परिवर्तन
सुख - दुख,या दैहिक, दैविक, भौतिक ताप - त्रय
राजा का रंक और रंक का राजा बन जाना
आदि - व्याधि, भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट
सब समय से ही है चालित, नियंत्रित।
समय की गति बड़ी विचित्र।
समय की गति बड़ी विचित्र।।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार