रिश्ते
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रिश्ते खुद ब खुद बन जाते है,बस दिल में थोड़ी सी जगह होनी चाहिए।
सिर्फ बनाना ही काफी नहीं होता कोई रिश्ता, उसे दिल से निभाना चाहिए।
पारिवारिक रिश्तों में तो सब जुड़ जाते हैं अपने आप, असली रिश्ता दिल से बनाना चाहिए।
खुन के रिश्तों का होता है अपना अहसास, बाकी रिश्तों में दिल का अहसास होना चाहिए।
प्रेम, मिठास, अहसास बनाता है रिश्ता,बस रिश्तों में थोड़ा प्यार होना चाहिए।
सारे मिष्ठान व्यर्थ है बिना मिठास के, रिश्तों में भी मिठास होना चाहिए।
संख्या चाहें जितनी भी हो रिश्तों की,पर सब रिश्ते एक होना चाहिए।
अनेकता में एकता का पाठ पढ़ाते हैं रिश्ते,दिल रिश्तों की कद्र होनी चाहिए।
आजकल बनने लगे हैं खोखले रिश्ते,पर उनमें भी प्यार का हवा होना चाहिए।
जबतक निभाए जा सके निभाएं
रिश्ते टुटने पर नहीं ग़म होना चाहिए।
भुलकर भी कभी रिश्तों में तल्खी नहीं लानी चाहिए।
सुंदर फूलों के गुलदस्ते सा रिश्ते बनाना चाहिए।
रिश्तों का कद्र हर किसी को ताउम्र करना चाहिए।
भूलकर भी कभी आ जाएं रिश्तों में कड़वाहट, तो उसे मिस्री सा बनाना चाहिए।
सावन के रिमझिम फुहारों सा रिश्ते निभाना चाहिए।
"दुर्लभ " जग में ताउम्र रिश्तों को सहेजकर रखना चाहिए।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ "
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार