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    क्या कहता है दिल

              क्या कहता है दिल!
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    क्या कहता है दिल!
    हरि के चरणों में शीश झूकाएं
    मंदिर, मस्जिद, देवालय में जाकर
    प्रभु को अपना आभार जताएं
    सुंदर दिवस, मास, वर्ष, संवत्सर,
    ऋतु, मौसम, प्रभु आप बनाएं
    चौरासी लक्ष योनि उत्पन्न कर
    बहुविधि सृष्टि आप रचाएं।

    क्या कहता है दिल!
    माता पिता ही ईश्वर के साक्षात् रूप
    इसी रूप में प्रभु का दर्शन पाएं
    मातृ-पितृ चरणों में हैं जन्नत
    इसी में सम्पूर्ण आनंद पाएं
    सारे तीर्थ-धाम हैं व्यर्थ
    सबके दर्शन इसी में पाएं
    सेवा करें नित इन चरणों की
    यही सब श्रुति,वेद,पुराण बताएं।

    क्या कहता है दिल!
    पशु-पक्षी,बाग-तड़ाग मनोरम
    पेड़-पौधे लता-द्रुम विविध
    सूर्य-चंद्र,ग्रह-नक्षत्र
    नभ मंडल के तारे अनेक
    सुबह-शाम,दिवह-रात्रि
    सूर्योदय-सूर्यास्त, प्रहर कष्ट
    घटि,पल,विपल कालावधि विविध
    बहु भांति प्रभु आप बनाएं।

    क्या कहता है दिल!
    करें हम धन्यवाद उस ईश्वर का
    जिसने दिया यह सुंदर जीवन
    धरा पर विचरण करने के लिए
    प्रभु के बनाए सुंदर सृष्टि में
    मनोरम जीवन जीने के लिए
    बहु भांति आनंदित होकर जग में
    हरि का नित गुण गाने के लिए।
    क्या कहता है दिल!
    क्या कहता है दिल।
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    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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