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    अनुपम छवि अवधकिशोर की

         
     अनुपम छवि अवधकिशोर की
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    अनुपम छवि अवधकिशोर की।
    मनमोहिनी सुरत अति मनभावन,मोही उर वसी कौशल्या लाल की।
    घुटुरुनि चलत मृदा हस्त लिए,हाथ उठाई खिलावे राम जी।।
    लटें लटके घुघुराली मुख ऊपर, जैसे रवि धापें श्याम बदरी।
    मुख खोलत चमकें दन्तावली,
    जैसे घन बीच चमकें दामिनी।।
    नृप दसरथ चब पकड़न जाए, ठुमुकी - ठुमुकी भागे रामजी।
    दधि - भात खिलाने जब माता आए,रोदन ठाने रामजी।।
    रोटी हाथ लेई काक को खिलावे,काक भागे उड़ी जाए।
    रोटी लेकर जब काक भागे,
    रिषिआने लगे तब रामजी।।
    काक भुषुण्डी देखि भ्रमित हुए,सकल ब्रह्माण्ड घुमावे तब रामजी।
    "दुर्लभ" मोहिनी सुरत देखी के, बलिहारी करें सकल सुख धाम जी।।
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    हरिचरणों में समर्पित
    द्वारा
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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