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    बेटियां

                 बेटियां
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    घर - आंगन की रौनक है, श्रृंगार है बेटियां,
    सच कहता हूं, माता - पिता की सम्मान है बेटियां।
    अक्षर - ज्ञान पाकर पाती है श्रेष्ठ सम्मान,
    कीर्ति में चार चांद लगाती है बेटियां।।

    पर रास्ते हैं कठिन अब चलना तू संभल के,
    पग - पग पर कांटे हैं सावधान रहें बेटियां।
    आस - पास समाज में ही छिपे बैठे हैं दस्यु,
    मां - बाप के लाज को बचाए रखें बेटियां।।

    ये माना ऐ आत्मजा स्वयंवर है तेरा अधिकार,
    पर वर चुनने में धोखा खा जाती हैं बेटियां।
    उतर जाती है पगड़ी सरेआम मां बाप की,
    प्रतिष्ठा बचाने की कसमें खाएं बेटियां।।

    मां बाप न देंगे धोखा तुझे योग्य वर दिलाने में,
    अपने जनक - जननी पर विश्वास रखें बेटियां।
    दुनिया के सारे कष्ट सहकर, श्रेष्ठ जीवनसाथी दिलाएंगे,
    तेरे जीवन को वे सच्चा स्वर्ग बनाएंगे।।

    जिंदगी की राहों में है कांटें ही कांटें,
    अच्छा - बुरा पहचानने में अक्सर धोखा खा जाती है बेटियां। 
    सब्र करें जीवन में स्वीकार करें मां बाप की इच्छा,
    देश और समाज में सर उठा कर जिएं बेटियां।।
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    वर्तमान समय में लव जिहाद और अपमानित होते माता पिता तथा बेटियों की बर्बाद होती जिंदगी के संदर्भ में आहत कवि हृदय के उद्गार एक कविता के रूप में


    द्वारा
    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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