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    यों हंस हंस के दिखाते हैं जमाने को मेरे साहिब।

    यों हंस हंस के दिखाते हैं जमाने को मेरे साहिब।
    तुम्हें क्या खबर क्या राज़ छुपा है इन मुस्कुराहटों के पीछे।

    कोई नहीं आने वाला ये इंतजार कब तलक।
    फिर भी क्यों भागते हैं हम हर किसी की आहटों के पीछे।

    तुम भूल गए हमें तो कोई ग़म की बात नहीं।
    हम तो परेशान हैं अपनी न भूलने की आदतों के पीछे।

    आंखों से छलकते हैं तो छलक जाने दो ये पैमाने।
    जमाने भर के दर्द लिए हैं हमने किसी की चाहतों के पीछे।



    सुशी सक्सेना

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