जिंदगी एक सफर
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जिंदगी एक सफर,
यह जग है मुसाफिरखाना,
यहां सब को ही है आना।
आसान नहीं है पूरा करना यह सफर,
कितनी ही जाते हैं मार्ग में ही बिखर,
चुनो सुंदर कर्मों के मोतियों को,
बिखेरो प्रेम के खुशबुओं को,
संभालो जग में भूले बिसरे को,
है सबको तुझे अपनाना।
लाओ मुस्कान मुर्झाए अंधेरों पर,
भरो पेट बुभुक्षितों का,
बनाओ आश्रय निराश्रितों का,
बनो सहारा असहायों का,
दो अक्षर ज्ञान निरक्षरों को,
तुम्हें सबको है उठाना।
ले सको उधार तो लो दर्द तुम यहां,
बांट को तो बांटो जग में खुशियां,
मत समझो किसी को यहां पराया,
तेरे गम से भी बड़ा गम है सबका यहां,
पूरा करो अपना सफर बनकर तू सबका,
राष्ट्र को तुम्हें आगे है बढ़ाना।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार