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    आज की भारतीय नारी

    आज की भारतीय नारी 

    उठो आज की भारतीय नारी,
    नहीं हो तुम श्रापित,
    कंचन, कामिनी, काया ही नहीं तुम,
    हो चण्डी, काली अवतारी।
    हुंकार भरो रणचण्डी-सी,
    टूट पड़ो आतताईयो पर,
    न समझो स्वयं को अबला,
    हो तुम जगत पर भारी।
    राजनीति की कुची है दुषित,
    हो जाओगी कलुषित यहां,
    न मिलेगा कोई सहयोग यहां से,
    न सुरक्षित रहेगी आबरू यहां।
    खुद ही लड़ना होगा तुझे,
     नैतिकता के दुश्मनों से,
    खुद को रखना होगा सुरक्षित,
    नारी विरोधी दस्युओं से।
    माता, पुत्री, बहन की पहचान नहीं इन्हें,
    पुत्री की भी नहीं इच्छा,
    कन्याहत्या, बालविवाह, दहेज,
    बलात्कार हैं इनके कर्म यहां।
    चरित्रहीन स्त्रीलोलुपो को,
    देनी होगी तुम्हें कठोर सजा,
    धुल-धुसरित कर क्षत-वक्षत करो इन्हें,
    न कर पाएं फिर घृणित खता।
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    मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    सिवान, बिहार

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