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    मल मलकर तन धो लिया

    मल मलकर तन धो लिया


    मल मलकर तन धो लिया,भीतर मन में मैल। 
    सीरत में कूरूपता, सूरत लागे छैल।।

    तन उजला मन मैल का, सही इसे मत जान।
    भीतर-बाहर एक सा, यही बना पहचान।।

    बाहर बेशक सांवला, भीतर उजला राख।
    चाल-चलन को साध ले, बनी रहेगी साख।।

    रंग-रूप दो रोज के, जैसे छाया धूप।
    अजर-अमर रह काम तो, ढल जाएगा रूप।।

    काया माया चार दिन, बदलें पल-पल ढंग।
    मनवा अपना साध ले, चढ़ा सही ले रंग।।

    तनमन अपना साध ले,सफल साधना जान।
    तन-मन काबू में नहीं, उसे साध मत मान।।

    सिल्ला मन का मैल धो, तन भी होगा पाक।
    मन पावन अनमोल है, तन तो होना खाक।।

                                      -विनोद सिल्ला

    1 टिप्पणियाँ

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