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    हमने कुदरत से खिलवाड़ की

    *****हमने कुदरत से खिलवाड़ की*****

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    हमने कुदरत से खिलवाड़ की इसलिए भोगना ये पड़ा
    मौत का नाच है हर तरफ इंशा रोता खड़ा ही खड़ा।

    जंगल काटे पर्वत काटे कुए तालाब सब नष्ट किए
     खूब किया कुदरत का दोहन इसीलिए तो तड़प रहे।

    बे मौसम बरसात ओ सूखा प्रकोप बाढ़का झेल रहे
    मुश्किल में अब जान फसी है कैसे खेल हम खेल रहे।

    अब भी अगर नहीं सम्हले तो लानत ही लानत होगी
    नाराजी कुदरत की बढ़ी तो इससे बुरी हालत होगी।,,, 
                                              गोपी साजन

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