*गजल*
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हवाओं ने जो झकझोरा लगा तूफान आया है
सुकून अब छीनने वाला कोई मेहमान आया है।
पत्ते जो खड़खड़ाए तो महसूस ये हुआ
डराने के लिए मुझको कोई हैवान आया है।
पिए हैं जाम उल्फत के नहीं है प्यास अब बाकी
पिलाने के लिए फिर क्यूं लहू के जाम लाया है।
मेरी औकात को सौगात देकर नापता है वो
सौदा जबरन करने को कोई नादान आया है।
मेरे एहसास जिंदा हैं परिंदा बन के उड़ता हूं
मुझे अब वश में करने को कोई शैतान आया है।,,,, गोपी साजन