" पतित पावनी गंगा "
प्राणदायिनी ,मोक्ष प्रदायिनी गंगा,
उत्तुंग हिम शिखरों से प्रगटी।
देख तीव्रत्तम प्रवाह, शिव जटा धारा।
शिव जटा से भारत भू पर,
प्रगटी पतित पावनी गंगा।।
अद्भुत जीवन दायक रसायन और
जड़ी- बूटियों का सार समेटे,
बहती धरा पर माॅं गंगा।
मिट्टी उपजाऊ बनाती।
जनकल्याण सदा ही करती। ।
बसे, अनेक तीर्थ तट तुम्हारे।
प्रयागराज, काशी है तीर्थ महान।
भरता गंगासागर और कुंभ मेला।
स्नान, पूजा- अर्चना कर, जन-जन,
धन्य अपना जीवन करता। ।
जान्हवी, मंदाकिनी, भागीरथी, अलकनंदा, नाना नाम धरे।
है रसायन युक्त जल, दूषित कभी न होता।
सालों साल भरा रखो तुम, कीड़ा एक न पड़ता। ।
अस्थि और शव विसर्जित जो जन करते।
मोक्ष वह पाया जाता।
लोभी, लालची, मतलबी जन,
कचरा, प्लास्टिक, गंदा नाला
गंगा में बहाते,दूषित गंगा जल करते। ।
विष्णुप्रिया माँ गंगा,भटकों को सुबुद्धी
दे दो, उद्धार हम सबका कर दो।
जय माँ गंगे, जय माँ गंगे।
नमामि गंगे, हर -हर गंगे।।
चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र.