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    दहेज एक प्रथा या बीमारी

    दहेज एक प्रथा या बीमारी


    सदियों से कैसे चल रही यह प्रथा,
    जिसमे जल रही हैं , मर रही हैं बेटियाँ l
    उसके बाद भी यह प्रथा,
    बढ़ती जा रही हैं बारी बारी |

    दहेज हैं एक महा-बीमारी,
    जो फैल रही हैं समाज मे मध्यम मध्यम |
    फट रही हैं आज भी हर बेटी के बाप की जेब,
    दिख रही हैं इसमें हमारी ही निकारी |

    जब लड़की बाबुल के घर से हैं जाती,
    साथ मे दहेज भी हैं ले जाती |
    जिसने जा कर तुम्हारा घर हैं सजाना,
    वही दहेज के द्वारा हैं खरीदी जाती |

    कहने को तों तुम हो उच्च खानदान से,
    दहेज को ले कर क्यों लगाते हो अपने आचरण पर दाग |
    गर हो तुम इतने काबिल,
    तों तुम को दहेज लेना कैसे हैं भाता |

    पता नही क्यों आज भी,
    बेटी के माता पिता बेटी को पढ़ा लिखा कर भी |
    दहेज के लिए,
    अपने सिर पर कर्ज का बोझ हैं ढोता |

    बस बहुत हुआ अब,
    दहेज की इस प्रथा को राम-राम कहने की हैं बारी आई |
    दहेज होगा ख़त्म तब,
    जब इस देश के युवा ने खुद पर ली जिम्मेवारी |

    कहाँ गईं तुम्हारी शिक्षा सारी,
    दहेज ले कर और दे कर
    दोनों पक्ष दिखाते हैं किस बात की लाचारी |
    दहेज एक प्रथा हैं नही, हैं एक बीमारी ||

                                कवि :- जतिन सिंह

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