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    प्यारे पिता

                  प्यारे पिता
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    धुल-धुसरित गोद में उठाकर,
    कंधे पर बैठाकर घुमाया।
    हाथी-घोड़ा बनकर के,
    पीठ पर बैठाकर घुमाया।।
    हाथ में स्लेट-पेंसिल पकड़ाकर,
    अ,आ,इ लिखना सिखलाया।
     सूरज गोल,चंदा गोल और,
    मछली जल की रानी पढ़ाया।।
    रात-दिन मेहनत करते,
    हमारी जरुरतें पूरी करते।
    रखते नहीं ध्यान कभी अपना,
    हमारे लिए ही जीवन जीते।।
    बच्चों की खुशी में खुश होते।
    ऐसे ही तपस्वी, त्यागी,
    जग में न्यारे पिता होते।।
    धरती पर ईश्वर ही आए,
    मेरे प्यारे पिता बनकर।
    रखें सदा ध्यान उनका,
    करें न भुलकर भी अनादर।।
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    मुकेश कुमार दुबे दुर्लभ
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)
    सिवान, बिहार

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