शीर्षक
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तू राष्ट्र की तकदीर बन
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तू उठ,
कदम बढ़ा,
आगे बढ़ता चल।
पर्वत,कानन, सरिता, निर्झर,
उतुंग शिखर या सागर तल,
अंबर की ऊंचाइयों तक,
धरती में पाताल तक,
न कोई तुम्हें रोक सके,
न कोई तुम्हें टोक सके,
तू ऐसा धीर, वीर, गंभीर बन,
तू ऐसा कर्मवीर बन।
न कर सके कोई अरि तेरा सामना,
न दिल में हो तेरे जग जीतने की कामना,
तू दे सके जग को अमन संदेश,
भ्रातृप्रेम, वसुधैव कुटुंबकम् की मशाल लेकर हाथ,
प्राप्त कर सको राष्ट्र विकास में सबका साथ,
हर घर तक पहुंचे विकास की लौ,
कर ऐसा तू मजबूत इरादा,
नजर उठाए कोई तेरे राष्ट्र सीमा पर,
करना चाहे भंग कोई राष्ट्र की एकता और अखंडता,
तू सिंह नाद कर,
आगे बढ़,
कर उसे क्षत्- विक्षत्।
शांति चाहने वाले के लिए शांति दूत बन,
अमन भंग करने वाले के लिए,
तू काल बन,
तू जयी बन,
तू राष्ट्र की तकदीर बन।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार