"पथ भ्रष्ट " लोगों को सही राह पर लाना _एक पुनीत कार्य _
मानव को मानव जीवन मे,
मानवता का धर्म सिखाएं।
राह छोड़ "पथ भ्रष्ट"हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
पथ से भटके हुए लोग ही,
दुनिया मे कोहराम मचाते।
नीति, नियम, संयम, मर्यादा,
का हरदम माखौल उड़ाते।।
कर अनीति का अन्त जहां में,
अति अनुपम सौंदर्य जगाएं।
राह छोड़"पथ भ्रष्ट"हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
अब कोई दुर्योधन, रावण,
नहीं कर सकेगा मनमानी।
हनूमान, अर्जुन, गाएंगे,
राम, कृष्ण की अमर कहानी।।
प्रबल_पराक्रम का अपने हम,
सारे जग में विगुल बजाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
शौर्य राम का, त्याग भरत का,
सेवा भाव लखन से लेकर।
सीता सा गृहणीत्व संजोए,
इस धरती के हर नारी_नर।।
यही सत्य संकल्प हमारा,
हर प्राणी को सुख पहुंचाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
जगत पुनः अनुदान चाहता,
जो हमने अनवरत दिए हैं।
धर्म ,मर्म, या कर्म क्षेत्र मे,
गीता की सौगंध लिए हैं।।
व्याकुल कभी न हों भय से हम,
नहीं निराशा मन में लाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
षड्यंत्रों की, दुष्चक्रो की,
सारी चाल मिटानी ही है।
बुद्धि, भाव, चिंतन, चरित्र की,
सारी धुंध उड़ानी ही है।।
स्वयं सत्य_पथ पर चल सबको,
चलने का संदेश सुनाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
सही राह मे लाना इनको,
पूजा, भक्ति और तर्पण है।
असत मिटाना अखिल विश्व से,
वंदन, आराधन, अर्चन है।।
पथ से भटके हुए पथिक को,
उनकी मंजिल तक पहुंचाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
हो प्रतिकूल परिस्थिति फिर भी,
चलें न किंचित भी घबराएं।
सुप्त_जगाएं, गिरे_उठाएं।
मार्ग बता, पुरुषार्थ जगाएं।।
नीति पंथ पर संकल्पित हो,
रूकें नहीं, बढ़ते ही जाएं।
राह छोड़ पथभ्रष्ट हुए जो,
उन सबको सन्मार्ग दिखाएं।।
डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"