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    वीरों की शौर्य गाथा


    शीर्षक : वीरों की शौर्य गाथा 
    देश के वीरों तुम्हारे सामने नतमस्त हम हैं
    दे दी आहूति तन की जिसने दिव्य है पावन अमर है
    सरहदों पर जब भी छाई युद्ध की काली घटाएं
    अग्नि के आगे तुम्हारी नमन करता दिवाकर है !
    आस्मां भी घुटनों पे जिनके समक्ष नतमस्त होता,
    और दिशा मदमस्त हों जिनको विजय के हार डाले,
    सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा,
    मॉंएं सुना बच्चों को देश पे कुर्बान होना हैं सिखाएं !!

    देखकर लिपटा हुआ तुमको तिरंगे में पिता ने,
    सह लिया हर दर्द हंसकर ना कोई आंसू बहाए,
    घुट्टी में ही देशभक्ति जिसने पिलाई अपने हाथों,
    गोद में रख चूमती माथा वो सीने को फुलाए,
    सर झुकाता हूं मैं बचपन की सभी उन लोरियों को,
    स्वप्न में भी ह्रदय में जो देशभक्ति ही जगाएं !
    सर झुकाते हैं ....

    इस आस में कि आओगे राखी पे तुम बहना से मिलने
    रेशमी धागों की हाथों से वो राखी बुन रही है 
    पर उलझ ना जाए हाथों में वो धागे तोड़ दी थी,
    सरहदों पे जबसे है तनाव वो ये सुन रही है।
    अनुज को जिस कांधे पे बैठा के मेला था घुमाया
    वो ही गौरव उठा कुल का कांधे पे वादा निभाए !!
    सर झुकाते हैं ....

    वो मौहब्बत जो शुरू से ही तुम्हारी थी दीवानी
    अग्निशिखा में लोहड़ी की ली थी कसमें सो निभानी,
    जानती थी प्रेम पहला उसका दूजा है तुम्हारा,
    दे दी विदा आंचल समेटे जीती जागती इक निशानी,
    धन्य है उर्मिला इस युग की जो कर्त्तव्य पथ पर
    कुटुंब के दायित्व को पूजा समझकर जो निभाए !
    सर झुकाते हैं ....

    मॉं भारती पर जब भी नज़रें कोई दहशतगर्द उठाए,
    जिंदा ना जाए यहां से चाहे कितने कसाब आए,
    मृत्यु की आंखों में आंखें डालकर हम देखते हैं,
    किसकी जुर्रत इस धरा पर इक अंश भी कब्ज़ा जमाए !
    कश्मीर से कन्याकुमारी तक अभिन्न है एक भारत,
    संभव हुआ है सैनिकों ने शीष जब इस हेतु कटाए !!
    सर झुकाते हैं ....

    Veerendra Jain 

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