मेरी माँ का प्यार

मेरी माँ का प्यार!!
 
मेरी माँ का प्यार जैसे ग्रीष्म की तपन में शीतल बयार ।
रहती दिन और रात मेरा हर काम करने को माँ तैयार ।।

मेरी हर नटखट जिद और जायज मांग को करती स्वीकार ।
दुनिया ने शायद माँ से ही सीखा होगा करना परोपकार ।।

मेरे दर्द में बहाती है आँसू और पीड़ा में भरती आह ।
भोर की पहली किरण से तारों की छाँव तक माँ की चाह ।।

ईंट पत्थर के मकान को अपनी ममता से बनाती घर ।
खाली वीरान सा लगता है माँ रहती नही जिस घर ।।

होते जब असहाय निर्बल माँ से ही मिलता हमको बल ।
समस्या चाहे जैसी भी हो उनके अनुभव से मिलता हल ।।

हर काम पलक झपकते ही चुटकी बजा है कर जाती ।
ये परियों वाला जादू माँ पता नही कहाँ से है लाती ।।

हाथों में रसोई की महक भोजन को बना दे पकवान ।
माँ ही तो मेरी दुनिया और हर माँ ही होती है महान ।।

मखमली कोमल स्पर्श में भी माँ का फौलाद सा वजूद ।
अवनी से अंबर तक फैली जिनके आँचल की छांव मौजूद ।।

माँ की दुआ और आशीष से ही है तकदीर संवर जाती ।
यहाँ झुकाते शीश जमीं पे वहाँ दुआ कबूल हो जाती ।।

मौजूद नही ईश्वर शायद हर घर मे इस हेतु माँ रहती है ।
माँ के चरणों को दुनिया शायद इसीलिए जन्नत कहती है ।।


-डॉ प्रणिता राकेश सेठिया *परी*
रायपुर  छत्तीसगढ़ 

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