ठुकराया जब-जब जग ने,
याद पिता की आती है।
किसके कांधे सिर धर रोऊँ,
टीस यही सताती है।।
पिता से ही जहाँ था मेरा।
होती हर चाहत पूरी।
मांगा एक खिलौना जब भी,
ढेर लगा दिया पापा ने। ।
स्कूल कॉलेज में कमाया नाम जब- जब
सिर ऑंखों पर चढ़ाया पापा ने।
अभिमान से मस्तक ऊॅंचा हो गया,
तुरंत गले लगाया पापा ने ।।
मेरे गिले-शिकवे, तारीफें,
किसको अब सुनाऊँ मैं।
भीड़ भरी इस दुनिया में,
नज़रे मेरी ढूँढती पापा को।।
मिलता अग्रज में साया पापा का।
आलिंगन झट कर लेता मैं, भाई का।
सुकून दो घड़ी, मिल जाता मुझको।
लगता जैसे पापा ही हैं।।
आए बड़ी मुसीबत जीवन में,
परेशाॅं हो जाऊँ मैं।
हे परमेश्वर! विनती मेरी यही आपसे,
दो घड़ी पास मेरे ,पापा को भिजवा देना।।
आप- सा पिता पाकर,
धन्य हुआ मेरा जीवन।
चरणों में आपके,
शत- शत नमन, शत -शत नमन।।
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चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र
((स्वरचित ,मौलिक,)
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