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    माँ सम् दूजा कौन "

     " माँ सम् दूजा कौन "

    ईश्वर का अनुपम उपहार है माँ। 
    गीत संगीत में रची- बसी, 
    जीवन की स्वर लहरी माँ। 
    मंदिर और शिवाला मेरी माँ।। 

    प्रथम गुरु माँ शिशु की। 
    जीवन का हर पाठ पढ़ाती। 
    कलम की बेजोड़ ताकत है माँ। 
    अक्षर- अक्षर में करती वास ।। 

    बैठ कर्तव्यों के मेरु शिखर पर, 
    पग- पग का पाठ पढ़ाती माँ। 
    जीवन की अंधियारी भूल भुलैया में, 
    ज्योति बन ,राह दिखाती माँ।। 

    भूल जब भारी मैं करती। 
    रूद्र बन क्रोध दिखाती माँ। 
    अपने शिशु हित खातिर, 
    काली, दुर्गा ,चंडी बन जाती माँ।। 

    अनुपम , अद्वितीय माँ है मेरी। 
    कौन है? जग में माँ सम दूजा। 
    ईश्वर भी तरसते पाने माँ को। 
    प्रेम, स्नेह, ममता की मूरत माँ।। 

    रचना कर माँ की, ईश्वर बेरोजगार हो गया। 
    माँ ने काम सारे लिए संभाल। 
    ऐसी जगत निराली मेरी माँ। 
    खुशियों का भंडार है ।। 

    माँ के चरणों में जन्नत मेरी। 
    माँ सम् दूसरा नहीं जहाँ में। 
    सारा जग लगता मुझको,फीका- फीका।। 
                      चंद्रकला भरतिया 
                       नागपुर महाराष्ट्र.

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