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    सच का राही


    सत्य के राही

    सत्य का पथ, पकड़ कर राही,
    विचलित नकर , मन को तू
    एक सत्य और एक अटल बस
    बाकी तो सब नश्वर साथी

    पहचान तू अपनी स्वयं बना -
    जी चाहे जी ले तू जितना 
    सत्य की माटी मे सदा तू -
    बीज सदा, सच के बोना ।

    आज झूठ ग़र बोल पड़ा तो,
    कल एक झूठ फिर बोलेगा।
    झूठ की हांडी सदा ही कच्ची,
    बार-बार फिर जोड़ेगा, उसे बार 

    सूच की लाठी ले चला चल ,
    झूठ को दूर ढकेलेगा।
    पा करके तू इसका सम्बल,
    कंट विहिन पथ पा लेगा ॥ 
        
    नीलम कुमार नील



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