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    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है


    💤कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है💤

    ऊपर वाले ने कुछ सोच कर, हमें बनाया होगा,
    नाक नक्श संग संस्कारों का, साज सजाया होगा,
    मिट्टी के पुतलो में रंगों की, छांटा बिखेरा होगा,
    बड़े अरमानों से अपने दिल में, सपने संजोया होगा,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

    दिया होगा, सत्य पर चलने की सनक खास,
    बनाकर एक बेहतर इंसान, पुतले में डाला होगा जान,
    प्रकृति की रक्षा करेगा, बनाकर एक अपना मुकाम,
    रंगमंच का भावी वजीर, करेगा भावनाओं का सम्मान
    दिन फिर बहुरेंगे, फिर बदलेंगी फिजाएं धारा की,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

    इतनी आशाएं, आकांक्षाओं से लदा आया हूं इस कर्मधाम में,
    लेकर एक विश्वास प्यार की, बंधी थी एक डोर,
    इतनी बड़ी जवाबदेही थी मिली, सोंचा कैसे चुका पाऊंगा,
    था अपना रोल जो मिला, खुद कैसे निभा पाऊंगा
    असत्य के सागर में अपना, सत्य के गोते लगा पाऊंगा,
    प्रकृति के भक्षकगण से, रक्षा कैसे कर पाऊंगा,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

    पूछ जब अंतरात्मा से अपने, पाया एक ही ज्ञान,
    सबको न मिल पाता है, इस रंगभूमि की शान,
    कर्म पथ पर पग तो बढ़ाओ, मिलेगा जग में मान,
    संस्कारों की बात कहां, रग-रग में सबके बसता है,
    ढूंढ पाए वो शक्स खड़ा है, लिए जान में जान,
    कमर कस मैं खड़ा हो गया, लेकर प्रभु का नाम
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।
    मिले ज्ञान से सीख ले, लिया कर्म को साथ,
    ठान लिया जब मैने तो, पाऊंगा अब मंजिल तमाम,
    मिले जीवन को सरस बनाकर, दूंगा एक संदेश,
    कर्तव्य से न कभी डिगूंगा, देता हूं विश्वास,
    बड़ों के आशीष को पाकर, फूला न समा पाऊंगा,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

    रंगमंच से जो सीखा मैंने, आज ये साझा करता हूं,
    कर्म करता हूं करूंगा, भटकूंगा न पथ से अपने,
    सहयोग की भावना दिल में भरी हो, भाव ऐसी ही रखता हूं,
    सीखा जिनसे सबकुछ, उन गुरुओं का आभार करता हूं,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

    अंत में यह प्रण लेता हूं, करूंगा दायित्वों का निर्वहन,
    सत्य को दिल से सजादा करूंगा, दूंगा उसका साथ,
    गुरुओं का सम्मान करूंगा, नमाऊंगा अपना शीश,
    ऊपर वाले की आस भरूंगा, चाहे मांगनी पड़े भीख,
    हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
    कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।
                
               ✍️ विवेक कुमार
               (स्वरचित एवं मौलिक)
    उत्क्रमित मध्य विद्यालय,गवसरा मुशहर
    मड़वन, मुजफ्फरपुर

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