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    ये शाम जब भी आती है

    ये शाम जब भी आती है 

    ये शाम जब भी आती है 
    यादों की किताब लाती है

    जिसमे मनमोहक चित्रण 
    कवित्त और लेख का मिश्रण

    लड़कपन किशोर और तरुणाई 
    कभी भोर जगे तो कभी खिल उठी अरुणाई

    वो शाम थी अलग

    वो सुबह भी थी अलग

    उस शाम में बचपन शोर था 
    उस सुबह में दौड़ता किशोर था

    अब तो पता ही नही चलता क्या शाम है क्या है सुबह

    हमेशा किसी न किसी बात से घर में मचती है कलह

    वो जीते थे बचपन

    अब कटती नहीं जवानी

    बुढ़ापे की फिक्र है

    बस सबकी यही कहानी

                            वरुण तिवारी 

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