सत्य की जीत


सत्य की जीत 
निःशब्द होकर मौन हो 
क्यूँ कर रहे स्वीकार्य 
अपनी कथनी और करनी 
का क्यूँ कर रहे प्रसार 
अंधकार ही अंधकार है 
क्यूँ ना दिख रहा प्रकाश 
तू स्तब्ध है या डरे 
क्यूँ ना कर रहे हुंकार 
ग़र इल्म है तुझे की 
मैं कर रहीं असत्य का प्रचार 
तो तू क्यूँ नहीं उठाता 
एक सत्य का प्रहार
अगर हूँ मैं बिल्कुल 
तेरी नजरों में स्वार्थ 
और झूठ की प्रतिमूर्ति 
तू क्यूँ ना कर देते 
मेरे हर शब्द का प्रतिकार 
पर ज्ञात है तुझे भी 
की है मेरा हर शब्द 
सत्य का प्रतिमान 
तू भी कर दे मुझ 
पर शब्द भेदी 
वाण का प्रहार 
पर निःशब्द हो 
कर रहा अपने 
करनी को स्वीकार्य  

डॉ रानी कुमारी उर्फ प्रीतम
कवयित्री, लेखिका एवं सहायक प्राध्यापक, इतिहास
expr:data-identifier='data:post.id'
Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

7

6

- हम उम्मीद करते हैं कि यह लेखक की स्व-रचित/लिखित लेख/रचना है। अपना लेख/रचना वेबसाइट पर प्रकाशित होने के लिए व्हाट्सअप से भेजने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
कंटेंट लेखक की स्वतंत्र विचार मासिक लेखन प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए यहाँ क्लिक करें।। 


 

2