नमन भाव कलश
लघुकथा (संवाद शैली)
*आदमी*
राम सनेही शादी के लिए कुछ कपड़े खरीदने की गरज से शहर के परिचित कपड़े की दुकान पर पहुँचा। प्रचंड जेठ की गर्मी ने उसे प्यास से आकुल कर दिया।
दुकान में बैठते ही सेठ से मुखातिब......
"लाला जी राम राम"
"राम राम जी... राम सनेही कैसे हो। "
"ठीक ही हैं ... घर में ब्याह है। "
"तो क्या दिखाएं"
"लाला जी प्यास बहुत जोर की लगी है..... पहले पानी पीना है। "
"अभी आदमी नहीं है... आदमी आने दो। "
(कुछ रुककर)
"लाला जी प्यास बहुत लगी है। "
कहा न ... अभी आदमी नहीं है। "
(मासूमियत से) "तो लाला जी कूछ देर के लिए आप ही आदमी बन जाइए। "
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*