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    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार असीमित है


    किसी लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार स्वयं में विशिष्ट एवं अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यही कारण है कि विश्व के विभिन्न देशों ने अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है परंतु बहुत से देशों ने इससे दूरी भी बना कर रखी है। इस संबंध में यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न सिर्फ अधिकार है बल्कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता भी रही है जिसे भारत के धार्मिक ग्रंथों, साहित्य, उपन्यासों आदि में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
    यदि अभिव्यक्ति के स्वरूपों की बात की जाए तो इसमें भाषण, पुस्तक, चित्रकला, नृत्य, नाटक, फिल्म निर्माण तथा वर्तमान में सोशल मीडिया को भी सम्मिलित किया जाता है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति की भारतीय परंपरा को किसी भी हानि से बचाने हेतु भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा इसे कानूनी वैधता प्रदान करते हुए मूल अधिकारों का अंग बनाया गया तथा अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सभी प्रकार की स्वतंत्रताओं में प्रथम स्थान प्रदान किया गया।

    वाक् और अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता का अर्थ है- शब्‍दों, लेखों, मुद्रणों, चिन्‍हों या किसी अन्‍य प्रकार से अपने विचारों को व्‍यक्‍त करना। अनुच्‍छेद-19 में अभिव्‍यक्‍ति शब्‍द इसके क्षेत्र को बहुत विस्‍तृत करता है। विचारों को व्‍यक्‍त करने के जितने माध्‍यम है वे अभिव्‍यक्‍ति, पदावली के अन्‍तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता में प्रेस की स्‍वतंत्रता भी सम्‍मिलित है। विचारों का स्‍वतंत्र प्रसारण ही इस स्‍वतंत्रता का मुख्‍य उद्देश्‍य है। यह भाषण द्वारा या समाचार पत्रों द्वारा किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित कर सके। इस प्रकार इसमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है।

    संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने कहा था कि पारदर्शिता और जवाबदेही को सच्चाई में बदलने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक आवश्यक तत्त्व है। यह न सिर्फ मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए जरूरी है, बल्कि इसी से ऐसी स्थिति बनती है जिसमें समाज मानव अधिकारों का व्यापक रूप से उपयोग कर पाता है।

    विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार में असहमति का अधिकार भी आता है। कोई भी लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र बना रह सकता है, जब तक लोग अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करते रहेंगे, चाहे वह राज्य के शासन की कितनी ही तीखी आलोचना क्यों न हो। जनता को सरकार की उन नीतियों तथा कार्यवाहियों की आलोचना का अधिकार है, जो संविधान के अनुरूप नहीं हैं या जनहित में नहीं हैं या दमनकारी हैं या भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाली हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने विचार और अभिव्यक्ति के मूल अधिकार को ‘लोकतंत्र के राज़ीनामे का मेहराब’ कहा है क्योंकि लोकतंत्र की नींव ही असहमति के साहस और सहमति के विवेक पर निर्भर है।

    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी अधिकारों की जननी मानी जाती है। यह सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक मुद्दों पर जनमत तैयार करती है। मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में न्यायमूर्ति ने वाक् स्वतंत्रता पर बल प्रदान करते हुए कहा कि लोकतंत्र मुख्य रूप से बातचीत एवं बहस पर आधारित है तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में सरकार की कार्यवाही के उपचार हेतु यही एक उचित व्यवस्था है। इससे न सिर्फ लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान की गई है बल्कि तार्किक चयन की स्वतंत्रता प्रदान कर बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था के विकास, समाज में संवाद अंतराल और सामाजिक तनाव को भी कम किया गया है।

    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारण भारत की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अंतर्गत शासन की शक्तियों का आज तक शांतिपूर्ण हस्तांतरण होता आया है जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बनाया एवं इसे स्थायित्व प्रदान किया।

    भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के असीमित होने का ही परिणाम है कि इसके माध्यम से दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों को भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्राप्त अधिकारों के प्रति जागरूक किया गया है। यह जनमत की इच्छाओं तथा अपेक्षाओं के साथ शिकायतों को सरकार तक पहुँचाने का माध्यम भी बनी है जिससे भारत सरकार अधिक जन-उन्मुखी होकर कार्य करने में सफल रही है तथा कल्याणकारी राज्य की स्थापना संभव हो पाई है। इसने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाया है। यही कारण है कि वर्तमान में भारतीय राजव्यवस्था पंचायती राज संस्थाओं के रूप में सहभागी एवं सक्रिय लोकतंत्र की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो रही है।

    उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में हम यह कह सकते हैं कि संविधान प्रदत्त विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित है।
    Dr. Vibhav Saxena 
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