ग़ज़ल
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जितने हम मशहूर हुए हम उतने ही मगरुर हुए
दुनियां तो मुट्ठी में करली पर अपनों से दूर हुए।
इंटरनेट,मोबाइल, टीवी सबने सबको जोड़ दिया
खुद से खुद को जोड़ न पाए हम कितने मजबूर हुए।
आकर्षण के भंवर जाल में सपने चकनाचूर हुए
खुशी बेच दी हमने अपनी हम कितने रंजूर हुए।
रिश्तों की दहलीज लांघ कर हा हम कितने क्रूर हुए
मर्यादा और संस्कार सब पलभर में काफूर हुए।,,,,, -गोपी साजन