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    ज्योर्तिलिंग श्री रामेश्वरम् यात्रा और सुनामी त्रासदी


    (यात्रा वृत्तांत)
              *ज्योर्तिलिंग श्री रामेश्वरम् यात्रा और सुनामी त्रासदी*

          यह वृत्तांत तब का है जब मैं अपनी सैन्य सेवा के 23 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर चुका था। अभी डेढ़ वर्ष पूर्व ही तो हमारे देश के किरीट कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर के सीमान्त क्षेत्र से स्थानांतरित होकर प्रशिक्षक बनकर आया था। जहाँ 23 वर्ष पूर्व प्रशिक्षु बनकर सैन्य धर्म का ककहरा पढ़ा था। स्थान है भारत का पेरिस कहा जाने वाला दक्षिण का महानगर बेंगलूरू (तब बेंगलोर) । यह नगर अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता की थाती तथा आध्यात्मिक विरासत अक्षुण्ण रखे है। मेरे सम्पूर्ण सैन्य सेवा का लगभग एक तिहाई भाग इसी नगर का सहगामी रहा है। सन् 2004 का वर्ष था। मेरी प्रतिबद्धता, कौशल, समर्पण के प्रतिफल स्वरूप मुझे पदोन्नति मिली। पारिवारिक आवास मिला तो परिवार संग लेकर आया। आनंद की अनुभूति हो रही थी। इस नगर का शिक्षा , आचार तथा स्वच्छता में कोई सानी नहीं। दक्षिण में रहकर उत्तर की अनुभूति इसी शहर में हो सकती है। कन्नड ,हिन्दी ,अंग्रेजी और उर्दू भाषाएं परस्पर बतियाती हैं। यदि आपके मन में खिन्नता, विचलन या द्वंद है तो दीजिए 20 मिनट यहाँ की किसी नैसर्गिकता ओढ़े किसी सड़क को घुल जाएगा विषाद का गरल ।

            हाँ तो मैं कह रहा था, परिवार लेकर आ गया। दो चार माह व्यतीत हुए। पत्नी से विमर्श के उपरांत आध्यात्मिक यात्रा की योजना सुनिश्चित हुई। अंततः तय हुआ कि बाबा सदाशिव भोलेनाथ के धुर दक्षिण में अवस्थित बारह ज्योर्तिलिंग में से एक रामेश्वरम् के दर्शन किए जाएं। यह शिवलिंग मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं स्थापित किया था। जिसके आचार्य लंकापति विप्र रावण था। यजमान - -पुरोहित का भाव 

    एक ओर तथा शत्रुता एक ओर ...... यही नैतिकता की पराकाष्ठा है। इसी के साथ मार्ग में पड़ने वाले तीर्थ मदुरै (मीनाक्षी देवी मंदिर) तथा कुमारी अंतरीप के अगणास के स्थानों को देखना सुनिश्चित हुआ। रे से आरक्षण किया गया। 
            सांझ के समय बेंगलोर सिटी रेलवे स्टेशन से मदुरई वाया मद्रास (चेन्नै) सेंट्रल गाड़ी पकड़ी। सुखद रेलयात्रा में रात्रि व्यतीत हुई। प्रात: दस बजे मदुरई स्टेशन पर उतरे। (यद्यपि रामेश्वरम् जानेक्षके लिए रामनाथपुरम् स्टेशन भी जाया जा सकता है)। स्नानादि से निवृत होकर हमने सपरिवार मीनाक्षी देवी मंदिर की ओर प्रस्थान किया। वस्तुत: मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर या मीनाक्षी अम्मां मन्दिर अथवा मीनाक्षी मन्दिर तमिलनाडु राज्य के मदुरई(मदुरै) नगर में ऐतिहासिक मन्दिर है। यह हिन्दू देवता भगवान शिव और तत् भार्या देवी पार्वती को समर्पित है। यह ध्यातव्य है मीन पांड्य नरेशों का राजचिन्ह है। यह मन्दिर तमिल भाषा के गृहस्थान 2500 वर्ष प्राचीन मदुरई नगर की जीवन रेखा है।
             मंदिर पहुँच कर देखा तो मंदिर के चारों दिशाओं में बारह गोपुरम् ने मनमोह लिया। इसका स्थापत्य एवं वास्तु अद्भुत है। यह विश्व के आधुनिक सप्त आश्चर्यों में सम्मिलित है। अन्य देव विग्रहों के दर्शन अर्चना पूजन किया। आस्था साक्षात मूर्तमान थी। सनातन प्रमुख था। प्राचीन और एकमेव दर्शन देखा था और औरआद्य एकात्म बोध का दर्शन करा रहा था। दर्शन , विश्राम और खानपान उपरांत सड़क मार्ग से बाबा भोलेनाथ के स्थान रामेश्वरम् जाने हेतु रामनाथपुरम् के लिए बस से रवाना हुए। रास्ते में दक्षिण भारतीय व्यञ्जन, केला, नारिकेल बरबस आकृष्ट कर रहे थे। अंतत: हम बस से गन्तव्य पहुँचे। बस अड्‌डे (स्थानक) से रामनाथपुरम् रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहाँ से मीटर गेज से रामेश्वरम् की गाड़ी पकडी। समुद्र पर बना पम्बन रेलपुल कौतूहल और रोमांच उत्पन्न कर रहा था। पहुंचने पर समुद्रस्नान तत्पश्चात बाबा रामेश के दर्शन का सुख प्राप्त हुआ। रामरुका, धनुष्कोटि इत्यादि के दर्शन किए। भगवान की यादों के साथ जोड़कर धन्य हुआ। आध्यात्मिक यात्राएं आत्मिक शांति का कारक बनती है। *ईश्वरत्व से जुड़ाव ही मोक्ष की प्रथम पैढ़ी है।* 
           हम पुनः रामेश्वरम् से रामनाथपुरम् आकर कन्याकुमारी के दर्शन लाभ के हेतु बस पकड़ी। । एक खास बात हमारे प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक, शिक्षक तथा पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम का रामनाथपुरम् गृहजनपद है। मछुआरा परिवार में जन्में कलाम के विज्ञान तथा गणित के गुरु शैव ब्राह्मण थे। जिन्होंने उनमें सनातनी आस्था और समरसता, निस्पृहता के बीज वपन किए। 
           हम बस यात्रा पूर्ण करके कन्याकुमारी नगर में पहुँचे। यह स्थान देवी पार्वती को समर्पित है। चूँकि आसपास के कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों का दीदार करना था सो एक धर्मशाला में कमरा ले लिया। व्यवस्थित होने के बाद तैयार होकर देवी कन्याकुमारी मंदिर में गए। मुख्य द्वार समुद्र की ओर खुलता है। यहीं भारत की मुख्य भूमि का तट है और अरब ,हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी का संगम है। इन दोनों सागरों का जल अलग-अलग देखा जा सकता है। मंदिर में देवी विग्रह के समक्ष तिल के तेल का दीपक प्रज्जवलित रहता है। गर्भगृह में आधुनिकता कोसों दूर खड़ी मिली। दर्शन उपरांत हमने निकट के सुन्दरेशन (भगवान विष्णुजी) मंदिर भी गए। वापस दोपहर में आकर कमरे में विश्राम किया। यद्यपि विवेकानंद राक पर श्री रामकिशन मिशन स्थल तथा तमिल के आदिकवि संत तिरुवल्लूर की विशाल काय प्रस्तर प्रतिमा को निहारने का अगले दिन कार्यक्रम था। लेकिन समय होने के कारण हमलोग निकल पडे। छोटी नौका से समुद्र यात्रा मनभायी। बच्चे खुश थे। शाम तक हम कमरे पर आ गए। अब हमारी यात्रा पूरी हो चुकी थी। बेंगलोर वापस जाने दूसरे दिन जाने का सुनिश्चित हुआ। सीधी गाड़ी सुबह ग्यारह बजे थी। 

           *मुख्य देवी पाठ* - 
                  *कांची तु कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी, दक्षिणे कन्याकुमारी मम:*
                  *शक्तिरुपेण , नमो नम: नमो नम:॥*
          (कांचीपुरम् - कामाक्षी , कडवेपुरम् - पद्माक्षी रेणुका, तिरुवनैकवल - अकिलनंदेश्वरी, वाणारसी - विशालाक्षी )

            हम रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी पहुँचे। एर्नाकुलम होते हुए जाने वाली गाड़ी पकड़ी। समय पर गाडी थी यथास्थान बैठ गये। हमारी यात्रा नारियल, ताड़ सुपाड़ी के झुरमुटों के मध्य से जारी थी। वहीं सागर भी हमराही था। कुछ समय के उपरांत समुद्र की ऊँची उठती लहरों ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। यह लहरें देखकर मन सशंकित हुआ। यह दृश्य मैने अपनी धर्मपत्नी से साझा किया। चूंकि समुद्र के स्वभाव की विशेष जानकारी न होने के कारण हम बस मूकदर्शक बने रहे ,परन्तु बाहर अशांत समुद्र का दृश्य मुझे उ‌द्वेलित कर रहा था। मुझे किसी अनिष्ट की आशंका चिंतित कर रही थी। मैं चुप रहा। रात में सभी सो गये। यात्रा सकुशल सम्पूर्ण हुई। हम प्रात: आठ बजे बेंगलूर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। सामान लेकर स्टेशन लाबी में यूनिट से वाहन की प्रतीक्षा में सामान रखा।
           यकायक मेरा ध्यान टीवी पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज ने खींचा। कल सुबह कन्या कुमारी, कराईकल सहित बहुत बड़े समुद्र के तटवर्ती क्षेत्रों में सुनामी से जन धन की हानि हुई। खबर सुनकर मै स्तब्ध हो गया ,......पत्नी को बताया। पत्नी की आंखों में आंसू थे । हम सोचकर सिहर गए कि यदि दूसरे दिन विवेकानंद जाते तो क्या हम आज यहाँ ऐसे होते। ईश्वर ने हमारी मतिपलट दी हम और हमारा - परिवार आज सुरक्षित है । वह हजार हाथ वाला है .....*जाको राखे साईयाँ......*
            आज भी दिल बैठ जाता है जब गाँव के गाँव, बस्ती की बस्ती काल कलवित हो गयीं। कंधा देने वाला भी न रहा । *मृत्यु अटल है सत्य है। लय और प्रलय ईश्वर अधीन ।*

         यह सुनामी थी अर्थात समुद्री भूकंप था, जो इंडोनेशिया के पश्चिम से शुरू होकर श्रीलंका और भारत के तटों से टकराकर विनाश में परिवर्तित हो गया। समुद्री लहरें 17.1 से 17.5 मीटर ऊँची थी। जिसमें 26 हजार से अधिक मृत्यु का ग्रास बने, वहीं ढाई लाख से अधिक विस्थापित हो गए। जीवन बिखर गया। यह सुनामी वर्मा प्लेट और भारतीय प्लेट की बीच विचलन का दुष्परिणाम था। ऐसा भूगर्भ शास्त्रियों ने कहा । त्रासदी के बाद बस यही- *परमसत्ता सर्वशक्तिमान*

    (समाप्त)

    डाॅ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित*
    *फर्रुखाबाद*

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