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    प्रकृति की पुकार



    प्रकृति की पुकार क्या कसूर मेरा

                   प्रिय मानव आशा करती हूं की आप मेरे संग जिंदगी का भरपूर आनंद उठाते हुए कुशलतापूर्वक रह रहें होंगे।आप यूहीं हसते खेलते,स्वस्थ रहे मेरे संग यही मैं प्रकृति चाहती हूं।आप सभी के लिये मैं स्वछंद हवा,फल,फूल आदि सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने का भरपूर प्रयास करती रहती हूं। आप सभी को कोई भी कमी या कोई भी तकलीफ न हो यही मेरी कोशिश करती रहती हूं।सुंदर पहाड़ो,नदियों, झरनों के व्दारा भी आपको मनोरम दृश्य संग मनोरंजन भी हो यही मैं चाहती हूं। पर आज एक शिकायत मैं प्रकृति आप सभी से करने के लिये पत्र लिख रही हूं।मैं बहुत तकलीफ मे हूं जिसकी वजह आप सभी मानव ही हैं,मैं खामोश रहती भी तो कब तक आखिर। आज जब मेरी सहन शक्ति खत्म हो गई तो मैं चुप न रह पाई।और आज आवाज उठा मै शिकायत कर रही आप सभी से मैं आज।आखिर आप ही बताइये मानव मैं कब तक आपके अत्याचारों को सहती मैं जाऊं?आप निरंतर पेड़ काटते जा रहे हैं,जबकि आप जानते हैं की आपके लिये बारीश का पानी हो या प्राणवायु(आक्सीजन)के लिये पेड़ो की अहम भूमिका है।बिन पेडों के ये दोनों पाना आपके लिये नामुमकिन है,उसके बावजूद पेड़ो का कटाव?आखिर क्यों ?जवाब दिजिये।नदियों मे भी निरंतर कूड़ा या कारखानों का दूषित पानी,या कपड़े धोना,पशुओं को नहलाना ये सब क्या है?आप खुदी जल प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे।जब की जल आप पीते हैं।जल बिन जीवन अधूरा,कैसे रहे प्रदूषित जल संग इंसा स्वस्थ और पूरा।मनोहारी विहंगम पहाड़ो को तो लोग पर्यटन स्थल के रूप मे इस्तेमाल कर आनंद उठाते हैं पर अपनी आदतों के चलते आप मानव यहां पर भी,कहीं पे भी कूड़ाकरकट फेंक इतनी खूबसूरत स्थान को प्रदूषित कर जाते हो। मानव आखिर क्या दोष है हम प्रकृति का ?हम तो आप के लिये ही हर पल बेहतरीन सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करते और आप हैं की हमें ही चोट पहुंचा कर दुखी कर रहे हो। फिर जब कोई प्राकृतिक बाधा आती तो बस कहते आखिर क्या पाप किये हमने जो ऐसे दिन देखने पड़ रहे।आप सभी से मुझ प्रकृति का आग्रह है की हम बेजुबान है पर हम मे भी जान है।हमें क्यो़ बेवजह परेशान करते आ रहे आप हमें मानव?आखिर हमें बताइये तो हमारा कसूर क्या है?अपनी जगह हमें रख सोचें जरा आप,की यदि आप पे हम प्रकृति कुल्हाड़ी चलाऐं या आप पे थूकें,या कूडा डाले तो आपको कैसा लगेगा?कल्पना मात्र से ही आप सिहर उठेंगे।हम तो सह रहे हैं। प्रकृति का विनाश होने से आप मानव ही रोक सकते हैं।आप हम प्रकृति की मदद करें आप से विनती है थोड़ा सोचियेगा।अपने ही हाथों से अपने पैरों पे कुल्हाड़ी न मारे।आज जब इस भयावह कोरोना वायरस की महामारी के चलते आक्सीजन लेवल इतना घट गया है तो इस पाप के भागीदार आप ही हैं।आज आप सभी को कृत्रिम आक्सीजन तक नहीं मिल पा रही है आप अपने अपनों को अपनी ही लापरवाही के चलते खोते ही जा रहे हैं।आज यदि बहुत अधिक मात्रा मे हम पेड़ धरा पे होते तो शायद आप सभी को इस वैश्विक महामारी से पूरी तरह ना सही पर जितना अधिक सहयोग कर बचा सकते थे जरूर बचा लेते।हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर आज आप सभी ने अपना ही नुकसान किया है।हम प्रकृति भी इस समय विवश हैं हम तो मात्र थोड़ा सा ही भू भाग घेरते हैं और बाकी सब तो हमें प्राकृतिक रुप मे सब मिल जाता है।चाहे वो पानी हो जो बारिश के जरिये मिल जाता,उर्वरा शक्ति हो जो धरा से मिल जाती है,सूर्य की रोशनी वगैरह सब हमें प्रकृति से मिल जाता परंतु आप सभी को हमारे द्वारा ली गई थोड़ी ही धरा भी खटकने लगती है।आप अपने लालच के चलते हम पर निरंतर वार कर हमें जड़ से उखाड़ फेंकते हो।हम तो विरोध भी नहीं कर पाते क्यों कि हम तो बेजुबान हैं।परंतु हममे जान है,हम भी सांस लेते हैं,हमें भी कुलहाड़ीयों के वार से दर्द होता है।अभी भी यदि आप सभी ना संभले तो ऐसा ना हो की मानव नाम की प्रजाति ही समाप्त हो जाऐ धरा से।आशा करती हूं आप मेरी बात समझ गये होंगे।।अपना और साथ-साथ प्रकृति का ख्याल रखें और जीवन का आनंद उठाऐं।आशा करती हूं और साथ ही दुआ भी करती हूं मैं प्रकृति आपको की जल्द ही महामारी का खात्मा हो जाऐ और मानव नाम की प्रजाती हजारों सालों तक यूंही धरा पे वास करते हुए खूब पेड़ पौधे लगाऐ।साथ ही आनंदित जीवन यापन करें।आपकी अपनी शुभचिंतक मैं प्रकृति।

    वीना आडवानी"तन्वी"
    नागपुर, महाराष्ट्र
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