"मिलावट __उन्मूलन"
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कहां खो गई ममता, करुणा,
कैसे? इतना क्रूर हो गए ?
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए ?
भौतिक सुविधाओं की खातिर,
ले लेते कितनों की जानें।
पेटी, कोठी, कोठा, भरने,
बुनते रहते ताने_बाने।।
मतलब के हित नहीं चूकते,
छल, प्रपंच,उत्पीड़न करने।
क्या विक्रेता ? क्या उपभोक्ता,?
कैसे ? ठगे जा रहे कितने ?
स्वार्थ वृत्तियों के चंगुल मे,
क्यों इतना मजबूर हो गए ?
यत्र, तत्र, सर्वत्र, मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए ?
अपमिश्रण कर, झूठ बोल कर,
कुछ क्षण का सुख मिल जाता है,
लेकिन दीर्घ काल मे केवल,
सत्य विजय श्री को पाता है।।
काला बाजारी के द्वारा,
जो समृद्धि, सुख, साधन पाते।
मानो किसी निरीह जीव के,
निष्ठुर काल पास बन जाते।।
"सत्यम्_शिवम_सुंदरम "से भी,
कैसे ? इतना दूर हो गए।
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए।।
आज मिलावट ने दुनिया मे,
कैसा , कितना ? कहर ढहाया।
खान_पान, विष युक्त हो गया,
तन दुर्बल है,मन मुरझाया।।
हवा प्रदूषित, दवा विषैली,
अन्न _अशुचि, जल भी मटमैला।
धूमिल_दृष्टि, और कर्कश_ध्वनि,
पूरा वातावरण कसैला।।
मानवता का गला घोटकर,
दानव बन, नासूर हो गए।।
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए ?
चारों तरफ कसक, सिसकन से,
कैसे नीद तुम्हें आती है।
पर_पीड़ा से पिघल न पाती,
कैसी पाषाणी छाती है।।
निशि _ दिन करुण कराहे सुनकर,
बंशी कैसे बज पाती है ?
मृदुता , मुदिता की फुलवारी ,
तड़प_तड़प झुलसी जाती है।।
न्याय नहीं कर पाए लेकिन,
अन्यायी मशहूर हो गए।
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए।।
जियो और जीने दो सबको,
ऐसी ही है सीख हमारी ।
सभी स्वस्थ हों, सभी सुखी हों,
यही नीति ही है स्वीकारी ।।
हत्या से भी घातक होता,
जुर्म मिलावट खोरों का है।
सीधे शूली पर लटकाना,
यही दंड इन चोरों का है।।
मारो, काटो, लूट मचाओ,
दुनिया के दस्तूर हो गए।
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए।।
लेकिन मानवता की खातिर,
अवसर एक प्रदान करेंगे
प्रायश्चित कर सकें पाप का,
ऐसा अनुसंधान करेंगे।।
सुधर गए तो अच्छा ही है,
मुख्य_मार्ग मे आ जाने दो।
नहीं बदलते, तो मत रोको,
फांसी पर फिर चढ़ जाने दो ।।
पंछी को छाया कब मिलती,
ऐसे पेड़ खजूर हो गए।।
यत्र, तत्र, सर्वत्र मिलावट,
कितना मद मे चूर हो गए।
डा . शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"